डर लगता है मुझे आज़ादी अभी अधूरी है
डर लगता है मुझे अपने आप को आईने में देखने से
डर लगता है उन लोगो को रोज़ बदलता देखने में
डर लगता है लोगो से मिलने में घर से बाहर निकलने में
डर लगता है एक दिन की आज़ादी में, आज़ादी छीनने में
डर लगता है उन हाथों को देखने में जो खड़े है कहीं फैलाए फ़रियाद की गुहार लगाने में
डर लगता है उन मासूमों को देखने में जिन्हें आसरे के नाम पे शोषण करने वालो लोगो से ना बचा पाने में
डर लगता है उनलोगों से जो जात पात के नाम पे खड़े है तलवार लिये
फ़र्क इतना है उस वक्त थे अंग्रेज आज है अपने
डर लगता है उन लोगों से जो धर्म के नाम पे लड़ते है
डर लगता है उन लोगों से जो इंसानीयत को भूल चुके है
डर लगता है उन नेताओं से जिनके वादे झूठे है जिनके भाषण के हर काम अधूरे है
डर लगता है उन रैलियो से जो आज़ादी के नाम पर निकल जाती है
वही एक और एक बूढ़ी औऱत खाने को तरस जाती है
डर लगता है ऐसे चेहरों से जो अपनों को छलनी करने के लिये सरहद पर खड़े है
जो पत्थर मार कर अपने हक़ को लड़ते है
डर लगता है उन आतंक के लोगों से जो देश के मेंरे जवानों को छलनी करते है दूसरे के भीक के पैसो से
डर लगता है उस शहीद को मरता देख जो खड़ा है एकसौ पच्चीस करोड़ की रक्षा के लिये
डर लगता है सरहद के नाम की राजनीति से
डर लगता है मुझे चीन के उस धोखे से जो खड़े है भारत के हर रस्ते में
डर लगता है मुझे आज़ादी अभी अधूरी है आज़ादी अभी अधूरी है |
- अपूर्व अग्रवाल १५ अगस्त २०१८
जय हिन्द
डर लगता है मुझे अपने आप को आईने में देखने से
डर लगता है उन लोगो को रोज़ बदलता देखने में
डर लगता है लोगो से मिलने में घर से बाहर निकलने में
डर लगता है एक दिन की आज़ादी में, आज़ादी छीनने में
डर लगता है उन हाथों को देखने में जो खड़े है कहीं फैलाए फ़रियाद की गुहार लगाने में
डर लगता है उन मासूमों को देखने में जिन्हें आसरे के नाम पे शोषण करने वालो लोगो से ना बचा पाने में
डर लगता है उनलोगों से जो जात पात के नाम पे खड़े है तलवार लिये
फ़र्क इतना है उस वक्त थे अंग्रेज आज है अपने
डर लगता है उन लोगों से जो धर्म के नाम पे लड़ते है
डर लगता है उन लोगों से जो इंसानीयत को भूल चुके है
डर लगता है उन नेताओं से जिनके वादे झूठे है जिनके भाषण के हर काम अधूरे है
डर लगता है उन रैलियो से जो आज़ादी के नाम पर निकल जाती है
वही एक और एक बूढ़ी औऱत खाने को तरस जाती है
डर लगता है ऐसे चेहरों से जो अपनों को छलनी करने के लिये सरहद पर खड़े है
जो पत्थर मार कर अपने हक़ को लड़ते है
डर लगता है उन आतंक के लोगों से जो देश के मेंरे जवानों को छलनी करते है दूसरे के भीक के पैसो से
डर लगता है उस शहीद को मरता देख जो खड़ा है एकसौ पच्चीस करोड़ की रक्षा के लिये
डर लगता है सरहद के नाम की राजनीति से
डर लगता है मुझे चीन के उस धोखे से जो खड़े है भारत के हर रस्ते में
डर लगता है मुझे आज़ादी अभी अधूरी है आज़ादी अभी अधूरी है |
- अपूर्व अग्रवाल १५ अगस्त २०१८
जय हिन्द
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